तराइन का युद्ध
तराइन का पहला युद्ध (1191ईस्वी)
पंजाब को जीतने के बाद मोहम्मद गौरी की राज्य की सीमाएं दिल्ली और अजमेर के शासक Prithvi Raj Chauhan तृतीय की राज्य की सीमाओं से मिलने लगी |
1189 ईसवी में मोहम्मद गोरी ने ताबरहिंद (भटिंडा )में दुर्ग पर अधिकार कर लिया और मलिक जियाउद्दीन तुलकी को वहां नियुक्त किया पृथ्वीराज चौहान तृतीय (राय पिथौरा) ने अपने लिए (मोहम्मद गोरी का) खतरा महसूस किया उसने मोहम्मद गौरी को आगे बढ़ने से रोकने का निश्चय किया एक विशाल सेना के साथ वह भटिंडा को जीतने के लिए आगे बढ़ा इस अभियान में सभी राजपूत राजाओं ने उसकी सहायता की |
नोट- जय चंद जो Kannauj के राठौर वंश का राजा था उसने इस युद्ध से अपने को अलग रखा क्योंकि पृथ्वीराज चौहान( राय पिथौरा ) ने उसकी लड़की का अपहरण कर उसका अपमान किया था | 1191 ईस्वी में भटिंडा के निकट तराइन का प्रथम युद्ध हुआ जिसमें मोहम्मद गोरी पराजित हुआ मोहम्मद गौरी की तराईन के युद्ध की हार भारत में यह मोहम्मद गौरी की दूसरी पराजय थी
मोहम्मद गौरी को युद्ध में पराजित करने के बाद पृथ्वीराज तृतीय ने भटिंडा की ओर प्रस्थान किया |
मलिक जियाउद्दीन ने 13 माह तक दुर्ग की रक्षा करता रहा लेकिन अंत में उसने आत्म समर्पण कर दिया तराइन के प्रथम युद्ध से पहले मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच कई बार छोटी-छोटी मुठभेड़ हुई थी जिसमें पृथ्वीराज की सेना जीतती रही |
तराईन का द्वितीय युद्ध 1192
तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद ही भारत में मुस्लिम शासन (Muslim rule) की स्थापना हुई थी |
तराइन का प्रथम युद्ध में पराजित होने के बाद मोहम्मद गोरी गजनी लोट गया इस पराजय से वह इतना दुखी हुआ था कि उसने खाना पीना भी छोड़ दिया था |
1 वर्ष की तैयारी के बाद मोहम्मद गोरी ने विशाल सेना के साथ भारत की ओर प्रस्थान किया और 1192 ईस्वी में तराइन पहुंचा और उसी स्थान पर अपना शिविर लगाया जा 1 वर्ष पूर्व उसकी पराजय हुई थी |
उसकी सेना में गजनी के चार प्रसिद्ध सेनानी-
1- खारबक
2- खर्मेल
3- इलाह
4- मुकल्बा थे
जो अनुभवी और दक्ष थे इसके अतिरिक्त ताजुद्दीन,यल्दौज और ऐबक भी उसके साथ था | उधर पृथ्वीराज तृतीय की सेना में उसका बहनोई मेवाड़ शासक समर सिंह और दिल्ली के गवर्नर Govind Raj थे| पृथ्वीराज-3 की सेना की कमान गोविंद राय,खांडेराया और बदमसा रावल के हाथों में थी |
युद्ध से पहले मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए संदेश भेजा लेकिन उसने कटु उत्तर के साथ प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया |
1192 ई. में तराइन का द्वितीय युद्ध हुआ एक बड़ी सेना के साथ पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी का सामना किया लेकिन मोहम्मद गौरी की सजगता और युद्ध प्रणाली के सामने पृथ्वीराज चौहान नहीं टिक सका और पराजित हुआ | गोविंद राय जो युद्ध में पृथ्वीराज तृतीय की अग्रिम दल का नेतृत्व कर रहा था मारा गया खांडेराय भी जिसने 1191 में तराइन का प्रथम युद्ध में मोहम्मद गौरी को घायल किया था उसका अभी अंत हो गया |
पृथ्वीराज चौहान-3 हताश होकर घोड़े पर बैठ कर भागने का प्रयास करने लगा लेकिन वह सूरसरि (आधुनिक सिरसा हरियाणा राज्य) के निकट पकड़ा गया और बंदी बना लिया गया |
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में विद्वानों ने विभिन्न मत प्रकट किए
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बारे में विभिन्न मत
चंद्र बरदाई के अनुसार➖ पृथ्वीराज चौहान को पकड़कर मोहम्मद गोरी गजनी लेकर गया जहां उसने शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गौरी की हत्या कर दी लेकिन बाद में उसे भी मार दिया गया |
तत्कालीन इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार➖ हसन निजामी ने अपनी पुस्तक ताजुल मासिर में लिखा है कि पृथ्वीराज तृतीय को कुछ समय तक शासक बनाए रखा गया लेकिन बाद में उसे हराकर उसके पुत्र को गद्दी पर बिठा दिया गया
किंतु हसन निजामी का मत➖स्वीकार किया जाता है कि पृथ्वीराज Mohammad Gauri के साथ अजमेर गया और उसने मोहम्मद गौरी की अधीनता स्वीकार कर ली थी लेकिन उसने विद्रोह करने का प्रयास किया तो उसे मृत्युदंड दे दिया गया
मिन्हाज के अनुसार➖ पृथ्वीराज चौहान तृतीय की मृत्यु सुरसरी( वर्तमान सिरसा) में हुई थी |
पृथ्वीराज चौहान के कुछ सिक्कों पर उल्टी और श्री मोहम्मद साम लिखा पाया गया जिससे प्रमाणित होता है कि पृथ्वीराज चौहान तृतीय ने मोहम्मद गौरी की अधीनता स्वीकार कर ली थी
तराइन का द्वितीय युद्ध भारत के इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी इसने उतरी भारत में तुर्कों की सत्ता की स्थापना को लगभग निश्चित कर दिया था |
तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद ही भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना हुई और अजमेर और दिल्ली पर मोहम्मद गोरी का शासन स्थापित किया गया | तराइन के विजय के तुरंत बाद मोहम्मद गोरी ने हॉसी, सरसुती, सहित समस्त शिवालिक प्रदेशों पर अधिकार कर लिया मोहम्मद गौरी की अधीनता में पृथ्वीराज चौहान के पुत्र को अजमेर का शासन सौंपा गया दिल्ली को भी जीत लिया गया
इन विजय के बाद मोहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को भारत में अपना प्रतिनिधि बनाया और उसे कोहराम में नियुक्त कर गजनी वापस चला गया Kohram कुतुबुद्दीन ऐबक का मुख्यालय था।वहीं से वह विजित प्रदेशों की देख-रेख करता था
मोहम्मद गौरी के वापस जाने के कुछ समय पश्चात विभिन्न प्रदेशों में पुन: विद्रोह प्रारंभ हो गया ।अजमेर और दिल्ली में विद्रोह हुए कुतुबुद्दीन ऐबक ने इन विद्रोह का दमन कर इन स्थानों को अपनी प्रत्यक्ष अधीनता में ले लिया कुछ समय पश्चात अजमेर में पृथ्वीराज-3 का भाई हरिराम ने 1193ई.में पुन: विद्रोह किया और रणथंबोर को घेर लिया है ऐबक इसका सामना करने के लिए आगे बढ़। हरिराम प्रतिकूल परिस्थितियों को देख रणथंबोर से हट गया उसने अजमेर को भी त्याग दिया अंत में हरिराम ने सफलता की सारी आशाएं छोड़ दी और जोहर कर आत्महत्या कर ली इसके बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में तुर्क सत्ता के प्रशासनिक पुनर्गठन का निश्चय किया मुस्लिम अधिकारियों को Ajmer में नियुक्त किया गया पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पुत्र को (गोविंद सिंह को) दुर्ग अधिकारी बनाकर Ranthambore भेज दिया गया |
अजमेर के तुर्क सत्ता को उखाड़ने का एक प्रयास मेढ़ राजपूतों ने भी किया था लेकिन कुतुबुद्दीन ऐबक ने इन के विद्रोह को दबा दिया इसके पश्चात कुतुबुद्दीन ऐबक ने मेरठ ,बरन (आधुनिक बुलंदशहर) कोयल (अलीगढ़) दिल्ली पर अधिकार कर उसे अपनी प्रत्यक्षअधीनता में ले लिया |
तराइन के दूसरे युद्ध से पहले मोहम्मद गोरी ने “क्विम- उल-मुल्क” नामक दूध को Prithvi Raj Chauhan के पास अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए भेजा था |
तराइन के युद्ध में मोहम्मद गौरी की विजय और पृथ्वीराज चौहान तृतीय के हार के कारण?
तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान तृतीय के पास विशाल सेना के होते हुए भी उसे हार का मुंह देखना पड़ा इसके कारण निम्न थे➖
मिनहाज उस सिराज के अनुसार मोहम्मद गौरी की सेना सुव्यवस्थित और राजपूत पृथ्वीराज की सेना एकदम अव्यवस्थित थी जो उसकी हार का सबसे बड़ा कारण था योद्धा मरना जानता था लेकिन युद्ध कला में निपुण नहीं था |
सामंती सेना की वजह से केंद्रीय नेतृत्व का अभाव होना ,अच्छे लड़ाका और अधिकारियों का प्रथम युद्ध में काम आना भी पराजय के बहुत बड़े कारण थे | सुबह सुबह शौचादि के समय असावधान राजपूत सेना पर अचानक आक्रमण करन, अश्वपति, प्रताप सिंह जैसे सामंतो का अपने स्वामी को हराने के भेद शत्रुओं को बताना भी हार का कारण बना था |
- प्रथम युद्ध को अंतिम युद्ध मानकर उपेक्षा का आचरण करना |
- उत्तर पश्चिमी सीमा की सुरक्षा का उपाय ना करना |
- दिग्विजय नीति से अन्य राजपूत शासकों को अपना शत्रु बनाना और युद्ध के समय एक मोर्चा न बनाने के लिए पृथ्वीराज स्वयं जिम्मेदार था |
इन सभी कारणों से पृथ्वीराज चौहान की तराइन के द्वितीय युद्ध में हार हुई थी |
तराइन के द्वितीय युद्ध के परिणाम
यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक Turning point था जिसके परिणाम स्वरुप भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हुई और हिंदू सत्ता का अंत हुआ |
आर सी मजूमदार के शब्दों में➖ इस युद्ध से ना केवल चौहानों की शक्ति का विनाश हुआ बल्कि पूरे हिंदू धर्म का विनाश ला दिया था
इसके बाद लूटपाट, तोड़फोड़, बलात धर्म परिवर्तन मंदिरों ,मूर्तियों का विनाश आदि का घृणित प्रदर्शन हुआ जिससे हिंदू कला और स्थापत्य कला का विनाश हुआ |
इस्लाम का प्रचार- प्रसार, फारसी शैली का आगमन, मध्य एशिया से आर्थिक सांस्कृतिक संबंधों की स्थापना, वाणिज्य व्यापार और नगरीकरण का प्रसार, नए वर्गों और शिल्पों का विकास आदि इसके दूरगामी परिणाम थे, जिसे इरफान हबीब नई शहरी क्रांति की संज्ञा देते हैं