TOPIC : CHHATTISGARH GOVERNMENT MAKE ROKA CHEKA
छत्तीसगढ़ सरकार ने फसलों की सुरक्षा और किसानों की आय बढ़ाने के लिए पारंपरिक ‘रोका–छेका‘ पद्धति को प्रभावी तरीके से लागू करने का फैसला लिया है. राज्य में रोका-छेका की व्यवस्था पहले से प्रचलित है, अब राज्य सरकार ने इसे और अधिक व्यवस्थित और असरदार बनाने का निर्णय लिया है.
रोका–छेका पद्धति क्या है?
- छत्तीसगढ़ राज्य में ’रोका-छेका’ की परंपरा बहुत पुरानी है. इस परंपरा के तहत मवेशी खेत में न घुस पाएँ इसको लेकर ग्रामीण बैठक करते हैं और आपस में रणनीतियाँ बनाते हैं. इस परंपरा के तहत खुले में घुमने वाले पशुओं को गौठानों में डाल दिया जाता है. इससे मवेशियों की भी सुरक्षा रहती है और किसानों की फसल को क्षति नहीं पहुँचती.
- कई गांवों में पशुओं को रखने के लिए बाड़े (गोशाला) की सुविधा नहीं है, ऐसे में पशु मालिकों को इस दौरान उनके चराने पर प्रतिबंध लग जाने से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
समस्याएँ
बेसहारा मवेशियों के सड़कों पर डेरा डालने के कारण यातायात व्यवस्था बद से बदतर होती जाती है. सड़कों पर चारों तरफ बेसहारा मवेशियों का जमावड़ा लगा रहता है, जिससे आए दिन दुर्घटनाएं होती रही हैं. रात के समय तो वाहन चालक को दिखाई नहीं देते हैं, जिसके चलते चालक इन मवेशियों से टकराकर घायल होकर अस्पताल पहुंच जाते हैं.
क्या किया जाना चाहिए?
- सरकार द्वारा अधिक से अधिक गोशालाओं का निर्माण किया जाना चाहिए.
- रोका-छेका को नई गोशालाओं के निर्माण के साथ शुरू किया जाना चाहिए जिससे गाय के गोबर से बनी खाद का उत्पादन भी हो सकेगा.
- इन गोशालाओं के माध्यम से राज्य सरकार रोजगार के नए साधन भी मुहैया कर सकती है.
- सरपंचों से अपील की जानी चाहिए कि वह प्रतिबंध के दौरान सभी जानवरों को गोशालाओं में ही रखें, जिससे पशुओं का उचित पोषण और फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
- गौशाला निर्माण का एक उद्देश्य बड़े पैमाने पर जैविक उर्वरक का उत्पादन करना भी हो सकता है, ताकि भूमि की उर्वरता को बढ़ाया जा सके और कृषि की इनपुट लागत को कम किया जा सके.
- गौशाला में एकत्र किए गए गोबर का उपयोग करके जैविक खाद के निर्माण के लिए नई गौशालाओं के साथ पुनर्जीवित किया जा सकता है.
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