विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार रोकथाम जागरूकता दिवस 2020
सार
सोशल डिस्टेंसिंग शब्द ने तो बुजुर्गों के जीवन में अकेलापन भर दिया है।
आज हमारे देश की ७० प्रतिशत आबादी नौजवानों की है और यह देश के लिए एक पूंजी है।
बढ़ती उम्र और घटती प्रतिरोधक क्षमता बीमारियों का एक प्रमुख कारक है।
बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में भेजने की बजाए अपने साथ रखने की पहल ज्यादा बेहतर कदम है ।
अगर बुजुर्गो का एक वर्ग, रचनात्मक या ध्यानात्मक कार्य से वृद्धाश्रम में कुछ समय बिताने के लिए इच्छुक है तो एक सुव्यवस्थित वृद्धाश्रम चयन करने के बाद ही आगे का कदम उठाना चाहिए ।
कारण
जीवन की भागदौड़ में बुजुर्गों की उपेक्षा लगातार बढ़ती जा रही है. भारत में संयुक्त परिवार व्यवस्था का चरमराना बुजुर्गों के लिए नुकसानदायक साबित हुआ है. ५० प्रतिशत से ज्यादा बुजुर्गों का मानना है कि उम्र या सुस्त होने की वजह से लोग उनसे रुखेपन से बात करते हैं.
बुजुर्गों के प्रति दुर्व्यवहार के मुख्य कारणों में समय का अभाव और एकल परिवार है. सर्वेक्षण रिपोर्ट 'भारतीय समाज अपने बुजुर्गों के साथ कैसे व्यवहार करता है', को जारी करने के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा कि भावनात्मक कमी को पूरा करने के लिए युवा समय नहीं निकालते. गांधीवादी चिंतक डॉ रजी अहमद बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा के लिए पुरानी परंपराओं के पतन को जिम्मेदार मानते हैं.
उपयोगी हैं बुजुर्ग
बाजारवाद और उदारीकरण के बाद बदले हुए समाज में बुजुर्गों का सम्मान काफी गिरावट पर है. उपभोक्ता समाज में बुजुर्ग "खोटा सिक्का”समझे जाने लगे हैं. आपसी सामंजस्य हो तो आज भी बुजुर्ग परिवार और समाज के लिए काफी उपयोगी हैं. अन्य सर्वे भी इस तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले भारत में बुजुर्गों की स्थिति उतनी खराब नहीं है. बुजुर्गों के प्रति समाज का दृष्टिकोण बदलने के लिए बुजुर्गों और आज की युवा पीढ़ी को एक साथ मिल कर और आपस में सहयोग बढ़ा कर काम करना होगा.